bpsc- 133 tulanatmak shasan aur rajaneti. most important question answer
( परिचय )
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प्रश्न1 भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये
उत्तर :- भारतीय संविधान का निर्माण संविधान सभा के द्वारा किया गया था संविधान के निर्माण में 2 साल 11 महीने तथा 18 दिन का समय लगा था
भारतीय संविधान की विशेषताएं निम्नलिखित है:-
सार्वभौमिक, लोकतंत्र गणराज्य
संविधान की प्रस्तावना में यह वर्णित है की हमारे देश के नागरिक सार्वभौमिक है भारत की संप्रुभता भारतीय नागरिकों में निहित है और इस शक्ति का उपयोग विभिन्न संस्थाओं द्वारा किया जाता है
राज्यों का संघ
संविधान के अनुच्छेद 1 के अनुसार भारत राज्यों का संघ है संविधान में नये राज्यों के गठन तथा राज्यों को शामिल करने का प्रावधान है
मूल अधिकार
भारतीय संविधान में नागरिकों के लिए मौलिक अधिकारों का प्रावधान है. मूल अधिकारों को संविधान के भाग 3 में रखा गया है तथा इन्हें लागू करने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को दिया गया है मौलिक अधिकार असीमित नही है इन पर उचित प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है
कुल मौलिक अधिकार 6 है
- स्वतंत्रता का अधिकार
- समानता का अधिकार
- शोषण के विरुद्ध अधिकार
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
- संस्कृति एवं शिक्षा का अधिकार
- संविधानिक उपचारों का अधिकार
राज्य के नीति निर्देशक तत्व
नीति निर्देशक तत्व आयरलेंड के संविधान से लिए गये है ये कल्याणकारी सिद्धांत है जिनको सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती नही दी जा सकती है इन सिध्हंतों को लागू करने के लिए नियम एवं कानूनों का पालन करना आवश्यक है
मूल कर्तव्य
मूल कर्तव्यों को भारतीय संविधान के भाग 4A के अनुच्छेद 51A में रखा गया है मौलिक कर्तव्य मूल संविधान का अंग नही है इन्हें संविधान के 42वें संविधान संशोधन से 1976 में जोड़ा गया इन कर्तव्यों को सोवियत संघ से लिया गया था तथा इन्हें सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों से संविधान में जोड़ा गया.
संसदीय व्यवस्था
भारत में भारतीय संविधान सभा द्वारा संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया गया है जिसके अंतर्गत मंत्रीपरिषद् विधान मंडल के प्रति जिम्मेदार होता है
लिखित संविधान
भारत का संविधान एक लिखित संविधान है जिसका निर्माण संविधान के द्वारा किया गया है जिसमे सभी सदस्यों ने आपसी विचार विमर्श के द्वारा विचारों को नियमों और कानूनों का रूप देकर लिपिबद्ध किया है
विशाल संविधान
भारतीय संविधान एक बहुत की विस्तृत संविधान है जिसमे भारत से सम्बन्धित सभी पहलुओं को काफी सरल और विस्तार से लिखा गया है मूल संविधान में 395 अनुच्छेद भाग और अनुसूचियां विद्यमान है.
संघात्म्कता और एकात्मकता के लक्षण
भारतीय संविधान भारत में प्रशासन के जिस रूप का अनुसरण करता है वह संघात्मक और एकात्मक व्यवस्था का सुंदर मिश्रण है
उदाहरण संघात्मक रूप से भारतीय न्यायपालिका स्वतंत्र है तथा एकात्मक रूप से आपातकाल तथा अन्य परिस्थितियों में केंद्र सरकार को अधिकतम अधिकार प्राप्त है
प्रश्न 2 राज्य के नीति निर्देशक तत्वों से आप क्या समझते है ?
उत्तर- राज्य के नीति निर्देशक तत्व -: ये कुछ ऐसे निर्देश है जो भारतीय संविधन सरकार को देता है जिसे सरकार को नीति निर्माण के समय ध्यान में रखना होता है
नीति निर्देशक तत्वों का भारतीय संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 36 से अनुच्छेद 51 तक वर्णन मिलता है
इन नीति निर्देशक तत्वों को आयरलेंड के संविधान से लिया गया है
उत्त्पत्ति
नीति निर्देशक तत्वों की उत्त्पत्ति कराची प्रस्ताव के बाद हुई थी
बी न राव बी आर अम्बेडकर ए के अय्यर के टी शाह ने इन सिद्धांतों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी
सप्रू समिति ने सुझाव दिया की अधिकारों को दो भागों में विभाजित किया जाना चाहिए
1 मूल अधिकार
2 निर्देश सिद्धांत
उप समिति ने भी इन अधिकारों को सही माना था
गहन विचार विमर्श के बाद इन्हें संविधान के भाग 4 में शामिल किया गया
संशोधन
संविधान संशोधनों के माध्यम से नीति निर्देशक तत्वों में नये खंडों को जोड़ा गया
इन संशोधनों से नीति निर्देशक तत्वों को और समावेशी तथा समाज कल्याणकारी बनाने पर जोर दिया गया
निम्नलिखित अनुच्छेदों को भारतीय संविधान में संशोधनों के माध्यम से जोड़ा गया है
39 : सभी बच्चों का विकास एवं स्वास्थ्य
39A : गरीबों के लिए समान एवं मुफ्त क़ानूनी सहायता
43A : मजदूरों को औद्योगिक प्रबन्धन में भागीदारी
48A : पर्यावरण जंगल एवं जंगली जीवन का संरक्ष्ण
क्रियान्वयन
- अलग अलग सरकारों ने इन नीति निर्देशक तत्वों के आधार पर कई योजनायें एवं कार्यक्रम बनाये
- कई आयोगों और बोर्डों का गठन किया
- योजना आयोग का गठन किया जो की पंचवर्षीय योजनायों को लागू करता था जिससे सामाजिक एवं आर्थिक समानता तथा न्याय को प्राप्त किया जा सके
- भूमि सुधार कार्यक्रमों से जमींदारी प्रथा को समाप्त किया गया जिससे ग्रामीण असमानताओं को कम किया गया
- सरकार ने कमजोर वर्गों की सहायता के लिए कदम उठाये जिससे गरीबों के हितो और अधिकारों को संरक्षित किया जा सके.
- महिलाओं के लाभ हेतु कानून बनाया और सामान वेतन लागु किया जिससे लिंग आधारित भेदभाव को खत्म किया जा सके
- पर्यवरण की रक्षा हेतु केंद्र एवं राज्य पर्यावरण संरक्षण बोर्ड की स्थापना की गयी
- SC/ST समुदाय के अधिकारों एवं हितो की रक्षा के लिए आरक्षण की व्यवस्था भी की गयी
- सरकार ने सूती वस्त्र उद्योग को बढ़ावा देने के लिए खादी एवं ग्रामीण उद्योग हथकरघा एवं हस्तशिल्प बोर्ड की बभी स्थापना की है
- सरकार ने ऐतिहासिक महत्व के स्थानों स्मारकों के संरक्षण के लिए कानून पारित किये
- सामुदायिक विकास कार्यक्रम रोजगार गारंटी अधिनियमों ने लोगों को सशक्त एवं देश निर्माण में भागिदार बनाया
प्रश्न 3 भारत के राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों का विश्लेषण कीजिये
उत्तर- भारत के राष्ट्रपति को देश की एकता अखंडता सम्प्रभुता और स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए कुछ शक्तियाँ प्राप्त है जिन्हें आपातकालीन शक्तियों के नाम से जाना जाता है
राष्ट्रपति देश में 3 परिस्थितियों में इन शक्तियों का प्रयोग कर सकता है
- अनुच्छेद 352 के अनुसार युद्ध की स्थिति में , बाहरी आक्रमण या सैनिक विद्रोह होने पर
- अनुच्छेद 356 के अनुसार किसी राज्य में संविधानिक संकट उत्त्पन होने की स्थिति में
- अनुच्छेद 360 के अनुसार देश में वित्तीय संकट आने की परिस्थिति में
अनुच्छेद 352
अनुच्छेद 352 का प्रयोग राष्ट्रपति ऐसी स्थिति में करता है जब उन्हें देश की सुरक्षा खतरे में लगे
खतरे की स्थिति युद्ध बाहरी आक्रमण या सैनिक विद्रोह से उत्त्पन्न हो सकती है
राष्ट्रिय आपातकाल लगाने के लिए इस प्रस्ताव को संसद में पेश किया जाता है
एक माह के अंदर अंदर संसद में इस प्रस्ताव को दो तिहाई बहुमत प्राप्त होना अनिवार्य है अन्यथा यह प्रस्ताव निरस्त हो जायेगा
मंजूरी मिलने के बाद यह 6 महीने तक जारी रहेगा और आपातकाल को आगे भी बदाया जा सकता है यदि राष्ट्रपति इसे प्रत्येक 6 महीने बाद मंजूरी प्रदान करे
भारत में राष्ट्रीय आपातकाल तीन बार लगाया जा चुका है
- 1962 के भारत चीन युद्ध के दौरान
- 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश के निर्माण के संघर्ष के समय
- 1975 में राष्ट्रपति ने प्रधान मन्त्री इंदिरा गाँधी की सलाह (राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा बताते हुए ) राष्ट्रीय आपातकाल लगाया था
अनुच्छेद 356
अनुच्छेद 356 के अनुसार राज्य में संविधानिक तन्त्र के विफल होने की स्थिति के राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है
1989 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बोमाई की सरकार से 19 मंत्रियों ने अपना सरथं वापिस ले लिया था
राज्यपाल ने बोमाई की सरकार को भंग कर दिया
कुछ समय बाद मंत्रियों ने अपना समर्थन वापिस दे दिया
राज्यपाल ने बोमाई को अपना समर्थन साबित करने के लिए अवसर ही नही दिया
बोमाई ने राज्यपाल के इस निर्णय को न्यायालय में चुनौती दी
1994 में उच्चतम न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया और इस फैसले में ये कहा गया था की राज्य की सरकार को भंग करने की सम्पूर्ण शक्ति राष्ट्रपति में नही है
अनुच्छेद 360
अनुच्छेद 360 के अनुसार राष्ट्रपति देश में वित्तीय आपातकाल की घोषणा भी कर सकते है
देश में वित्तीय संकट होने की स्थिति में राष्ट्रपति देश में वित्तीय आपातकाल लगा सकता है
इस प्रकार के आपातकाल को भी लगाने के लिए संसद की मंजूरी लेना आवश्यक है
प्रश्न 4 क्षेत्रीय दल क्या है तथा भारत में उसके महत्व की चर्चा कीजिये.
उत्तर:- भारत में राजनितिक दल का वर्गीकरण दो तरह से किया जाता है
- राष्ट्रीय दल यह एक ऐसा दल है जो लोकसभा के चुनावों में पुरे देश में भाग ले सकता है
- राष्ट्रीय दलों के स्वरूप को प्राप्त करने के लिए दल को निम्नलिखित आनिवार्य्ताओं को पूरा करना आवश्यक है
- कम से कम चार राज्यों में राज्य पार्टी का दर्जा प्राप्त हो
- पार्टी को 4 लोकसभा की सीटें प्राप्त हो तथा साथ में 6 % मतदान प्राप्त हो
- लोकसभा के राज्यों के अलावा अन्य राज्यों में 2 % बहुमत प्राप्त होना चाहिए.
राज्य स्तरीय दल
- इन दलों का क्षेत्राधिकार या प्रभाव एक राज्य तक सीमित होता है
- अनिवार्यताएं निम्नलिखित में से कोई एक
- डाले गये मतों का 6% प्राप्त हो साथ ही राज्य की विधानसभा की 2 सीटें जीतें
- राज्य में डाले गये मतों का 6% मतदान प्राप्त हो और उसी राज्य में 1 लोकसभा सीट हो
- उसी राज्य में विधानसभा की 3% सीट या 3 सीट जो भी अधिक हो
- राज्य को आवंटित प्रत्येक 25 लोकसभा सीट या खंड में एक लोकसभा सीट प्राप्त हो
क्षेत्रीय पार्टी
- इन पार्टीयों का प्रभाव पुरे देश में न होकर किसी एक क्षेत्र विशेष में होता है
- कुछ विद्वान राज्य दल और क्षेत्रीय दल को एक ही मानते है
- ये ऐसे दल होते है जिनका क्षेत्राधिकार राज्य तक सीमित होता है
- इनकी जड क्षेत्रीय आकांक्षाओं और समस्याओं से जुडी हुई होती है
- ये दल अपनी पहचान उस राज्य के धर्म संस्कृति भाषा द्वारा बनाते है
- क्षेत्रीय दल की मान्यता की लिए अनिवार्यताएं
- अपना अधिकार राज्य तक सीमित रखना होगा
- इन दलों को उस क्षेत्र की भाषा धर्म संस्कृति एवं पहचान की रक्षा करनी होगी
- इन दलों का मुख्य सम्बन्ध स्थानीय या राज्य स्तरीय समस्याओं से सम्बन्धित होना चाहिए
क्षेत्रीय दलों का महत्व
- क्षेत्रीय दलों के माध्यम से भारतीय राजनीति में शक्ति का विकेंद्रीकरण हुआ है
- क्षेत्रीय दल लम्बे काल से चली आ रही एकदलीय पद्धति की शक्ति को चुनौती देते है
- क्षेत्रीय दलों के माध्यम से निचली जातिओं वाले समूहों को बराबर का प्रतिनिधित्व मिल पाता है
- क्षेत्रीय दल अपने अपने क्षेत्र की समस्याओं को उजागर करते है एवं उनका समाधान करते है
- ये लोकतंत्र के सुचारू संचालन में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है
- क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व के कारण क्षेत्रीय विकास सुचारू रूप से संभव हो पाता है
- चुनाव का केंद्र बिंदु अधिकतर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे होते है ऐसे में क्षेत्रीय दलों के द्वारा जमीनी स्तर की समस्या का समाधान किया जाता है
- क्षेत्रीय दलों के माध्यम से लोकतंत्र में आम जनमानस भी सक्रिय भागीदार बन पाते है
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